जयोदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र ईशुरवारा

साँची के स्तूप में मिला गुरुदेव को ईशुरवारा का प्राचीन इतिहास

भारत के मध्य में स्थित मध्य प्रदेश के सागर जिला में स्थित ग्राम ईशुरवारा में विध्यांचल पर्वत की शोभा को बड़ा रहा यह क्षेत्र जिसे प्रकृति ने अपनी हर जलवायु का आर्शीवाद दिया है । प्रकृति के पहाड़ों की हरियाली एक अद्भुत ऐसा दृश्य है, जो मन को शांति और सुकून देता है। चारों ओर हरी-भरी घास, पहाड़ी झाड़ियाँ और रंग-बिरंगे फूलों से सजा हुआ यह प्राकृतिक सौंदर्य, मानव को अपने आप से जुड़ने का अवसर प्रदान करता है। पहाड़ों की ठंडी हवा और चंचल नदियाँ, ये सभी मिलकर एक ऐसा माहौल बनाती हैं, जिसमें मन और शरीर दोनों को आराम मिलता है। हरियाली से घिरे हुए पहाड़ जीवन का सच्चा आकर्षण हैं, जो हमारे दिल और दिमाग को पूरी तरह से नई ऊर्जा से भर देते हैं । इन्हीं पहाड़ों की हरियाली के बीचों बीच में विश्व प्रसिद्ध 900 वर्ष प्राचीन कई अतिशयों से युक्त श्री 1008 शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर जयोदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र, दिगम्बर जैन मंदिर है, जो कि श्रेष्ठी पाणाशाह जी को जब स्वप्न आया तो उन्होंने इस पावन धरा पर जिन मंदिर का निर्माण विक्रम संवत 1232 में कराया था, जिसमें भगवान शांतिनाथ जी, कुंथूनाथ जी, अरहनाथ जी, चंद्र प्रभु जी और नेमीनाथ जी भगवान की खड़गासन मुद्रा में श्रेष्ठी पाणाशाह जी ने महान अतिशयकारी प्रतिमाओं को विराजमान करवाया ।  इसलिए यह क्षेत्र अतिशय कारी क्षेत्र कहलता है । सन् 1985 में आचार्य श्री संघ सहित अपने शिष्य मुनिपुंगव सुधा सागर जी महाराज को लेकर ईशुरवारा पधारे । जब आचार्य श्री ने ईशुवारा क्षेत्र को पहली बार देखा तो आचार्य श्री ने कहा एक साधक को जो भी कुछ चाहिए, साधना के लिए वह सब कुछ यहां पर है ।आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के आर्शीवाद से मूल मंदिर का निर्माण कार्य संपन्न हुआ । सन् 2019 में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज पुन: आये तो उन्होंने नव निर्मित मंदिर को देखा और कहा यह मंदिर ऐसा लगा है की जैसे स्वर्ग से बना- बनाया देवों ने उतार दिया हो । प्राचीन समय से ही इस धरा पर कई अतिशय होते रहते हैं

प्राचीन समय के कुछ विशेष अतिशयों का वर्णन निम्न प्रकार है ।

पहला अतिशय

यहाँ घनघोर जंगल हुआ करता था, प्राचीन समय में जब पूजा- बब्बा एक बुन्देलखण्ड के प्रसिद्ध और खूखाँर डाकू हुआ करते थे, उस समय उनके डाकूओं का समूह मंदिर के शिखर पर लगे कलश को चुराने आऐ, वह कलश को चुराने के लिऐ शिखर पर चढ़े, और उन्होंने कलश को चुरा लिया, तब कलश को चुराने के बाद जैसे ही कलश को हाथ में लिया और एक दूसरे को दिखाने लगे, जिस जिस के हाथ में वह कलश गया उन सभी चोरों के भाव बदल गऐ । जब उन चोरों ने अपनी कलश चुराने की बात गाँव वालों को बताई, उसके बाद स्वयं पुन: कलश की स्थापना कर क्षमा याचना कर चले  गए ।

दूसरा अतिशय

यहाँ पर एक विशाल सर्प रहता था, जो भगवान के चरणों में बैठा रहता था, जब ग्राम वासी अभिषेक-पूजन करने मंदिर जी में आते थे, तब अभिषेक-पूजन के समय वह सर्प कहीं चला जाता था और पूजन के बाद पुनः भगवान के चरणों के पास आ जाया करता था ।

तीसरा अतिशय

दो श्रावक मंदिर जी में विधान पूजन कर रहे थे, अचानक मंदिर पर गाज (बिजली) गिरी जिससे मंदिर की पूरी दीवारें गिर गयी जिसमें बड़ी बड़ी शिलाएं पूजन करने वालों के ऊपर से नींचे गिरी, लेकिन पूजन करने वालों को इसका एहसास भी नहीं हुआ । जब उनकी पूजन खत्म हो गई तो बड़े बड़े पत्थरों का ढ़ेर अपने आजू-बाजू देखकर वह दोनों श्रावक घबरा गए, जब आसपास के ग्राम वासी मंदिर में आऐ तो उन्होंने देखा कि बड़े बड़े पत्थरों का ढ़ेर चारों ओर फैला हुआ है लेकिन पूजन कर रहे श्रावकों को खरोंच भी नहीं लगी ।

चौथा अतिशय

प्रचीन समय में जब मुगल चारों तरफ के मंदिर नष्ट कर रहे थे उस समय ईशुरवारा में भी मुगलों ने मंदिर को नष्ट करना चाहा, लेकिन जैसे ही मुगलों ने मंदिर को नष्ट करने के लिए मंदिर में प्रवेश किया और भगवान की और आगे बढ़े तभी अचानक भगवान के चरणों से काले काले बिच्छुओं का एक बहुत विशाल झुण्ड निकाला और मुगलों को मंदिर से भागना पड़ा वे भगवान को छू भी नहीं पाए ।

पांचवा अतिशय

दिनांक 28 सितंबर 2023 को उत्तम बह्मचर्य के दिन देवों द्वारा स्वत: अभिषेक हुआ ।

जिसके चित्र नीचे अंकित हैं